Wednesday, May 19, 2010

सीआईआई जाति आधारित जनगणना के खिलाफ

उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने जाति आधारित जनगणना की यह कहते हुए आलोचना की है कि ‘‘क्यों मरते हुए मुद्दे को फिर से जिंदा किया जा रहा है।’’ सीआईआई के नवनियुक्त अध्यक्ष हरि एस. भरतिया ने कहा कंपनियाँ जाति से हटकर नीतियाँ अपनाना चाहती हैं।

जनगणना में जाति को शामिल किए जाने पर उनकी प्रतिक्रिया पूछे जाने पर भरतिया ने कहा ‘‘इस पर प्रतिक्रिया देना कठिन है, क्योंकि हमारी कुछ कंपनियाँ जाति आधारित बातों के लिए तैयार नहीं हैं।भरतिया फार्मा कंपनी जुबिलेंट आर्गेनोसिस के सहचेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक भी हैं। उन्होंने कहा हमारी कंपनी जाति आधारित नीति अपनाकर खुश नहीं होगी।चैंबर का विचार है कि जाति आधारित जनगणना से एक बार फिर से पुराना सामाजिक मुद्दा खड़ा हो जाएगा, जो बीतते समय के साथ ही दफन हो चुका है

।सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी में बहुत से लोग यह नहीं जानते कि वे किस जाति के हैं। ‘‘उन्हें अपनी जाति के बारे में अपने अभिभावकों से पूछना पड़ेगा।’’ बनर्जी ने पूछा कि आप एक ऐसे विवाद को फिर क्यों पैदा करना चाहते हैं, जो खत्म हो चुका है। सरकार पर विभिन्न राजनीतिक दलों को जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव पड़ रहा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की इसी सप्ताह बैठक होने की उम्मीद है, जिसमें इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा।वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी पहले ही जाति आधारित जनगणना को उचित ठहरा चुके हैं। उन्होंने पिछले सप्ताह मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में कहा था कि जाति आधारित जनगणना आखिरी बार 1931 में हुई थी। इसे आजादी के बाद भी जारी रखा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब संप्रग सरकार ने इस दिशा में पहल की है। समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) ने जनगणना में जाति को शामिल किए जाने की माँग की है। भाजपा ने भी इस माँग का समर्थन किया है।

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