Monday, May 10, 2010

जाति जनगणना में भावी सियासत

जाति के आधार पर जनगणना का सवाल केंद्र सरकार और कांग्रेस दोनों के लिए मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा ही लग रहा है। केंद्र सरकार और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में बनी सहमति के बाद जाति जनगणना के सवाल पर भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सकारात्मक आश्वासन देकर विरोधियों के आक्रोश को ठंडा कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार और कांग्रेस के भीतर इस मसले पर अभी भी अलग राय जाहिर करने वालों की कमी नहीं है।
लोकसभा में जाति के आधार पर गिनती का विरोध करने वाले कांग्रेस सांसद भक्त चरण दास अभी भी अपनी राय पर कायम हैं। उनका कहना है कि जिन यादव बंधुओं को लोगों ने खारिज कर दिया, उनको जनगणना के बहाने अपनी राजनीतिक रोटी सेंकेने का नया मौका हाथ लगा है। चरण दास ने कहा कि आने वाले दिनों मंे जाति के आधार पर गिनती के भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं। उनका कहना है कि इस मुद्दे का तात्कालिक लाभ जिसे भी हो जाए सामाजिक तानेबाने के लिए यह बहुत ही दुखद पहलू साबित होगा। कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर कहा जा रहा है कि सरकार के फैसले से मंडल और पिछड़ों की राजनीति करने वालों का दांव फेल हो जाएगा और कांग्रेस फायदे की स्थिति में रहेगी।
कानून मंत्री वीरप्पा मोइली के मुताबिक जाति के आधार पर राजनीति करने वालों की हकीकत सभी जान चुके हैं। उनका मानना है कि जाति की सही तस्वीर सामने आने से विकास केंद्रित योजनाओं का सही वितरण जरूरत के मुताबिक संभव होगा। मोइली की लाइन पर पार्टी के कई मंत्री और नेता खड़े हैं। हालांकि पिछले दिनों कैबिनेट बैठक में ही यह स्पष्ट हो गया था जब आधा दर्जन से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों ने गृह मंत्री पी चिदंबरम के तर्क को खारिज करके जाति आधारित जनगणना का समर्थन किया था।
पार्टी के रणनीतिक समूह में शामिल एक नेता के मुताबिक पूरी संसद की बात को एकतरफा फैसले से खारिज नहीं किया जा सकता है। एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक सही तस्वीर जानना सबके हित में है। सांसद बेनी प्रसाद वर्मा इस सवाल को सिरे से खारिज करते हैं कि इससे जाति की राजनीति करने वाले दलों और नेताओं को कोई फायदा होगा। उन्होंने कहा कि देश में मंडल और कमंडल दोनों ही धड़ों की राजनीति का दौर समाप्त हो गया है। उनके मुताबिक जब जाति की हकीकत सभी मानते हैं तो इसकी सही संख्या जानने से परहेज की किसी भी तरह की कोशिश से जातिवादी सियासत करने वालों को ही अनायास एक मुद्दा मिलेगा।
कांग्रेस में ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं है जिनका मानना है कि कांग्रेसनीत सरकार के संख्या के लिहाज से नाजुक समीकरण को देखते हुए संसद के बहुमत को टालना सरकार के लिए नई मुसीबत खड़ी कर सकता था। लिहाजा सरकार अहम मौकों पर सरकार के साथ खड़े लालू-मुलायम जैसे सहयोगियों को भी नाराज करने के पक्ष में नहीं थी।
सूत्रों का कहना है कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष भी जाति के आधार पर जनगणना की मांग करने वालों की संख्या देखकर इसके पक्ष में खड़ी नजर आईं। सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2005 में भी सोनिया गांधी की अगुआई वाले राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की ओर से जाति के आधार पर जनगणना का मामला उठाया गया था। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष इस मामले में सदन का मत जानने को विशेष उत्सुक थीं। ऐन मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का मत भी गृह मंत्री पी चिदंबरम की उन सभी तार्किक मसौदों पर पानी फेर गया जो उन्होंने जाति आधारित जनगणना के प्रस्ताव को खारिज करने के लिए तैयार किए थे।

जनगणना के समर्थक मंत्रियों और सांसदों का तर्क है कि जब हरेक योजना में पिछड़ों व वंचित तबकों की संख्या जानने की जरूरत होती है तो सरकार को हकीकत जानने से क्यों परहेज करना चाहिए। हालांकि केंद्र सरकार के सूत्रों का कहना है कि जनगणना के लिए तय होने वाली प्रक्रिया में इस बात का जरूर प्रयास होगा कि किस तरह से जाति गणना से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।
धर्म और भाष भी बने जनगणना का आधार’
जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर जल्द कोई फैसला लेने के सरक ार के हालिया आश्वासन के बीच, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने जनगणना फॉर्म में धर्म और भाष क क ॉलम भी जोड़ने क ा सुझाव दिया है। आयोग के अध्यक्ष क माल फारूकी ने शनिवार को संवाददाताओं से क हा, ‘अगर जनगणना में जाति के साथ धर्म और भाष को भी बुनियाद आधार बनाया जाता है तो इससे देश के अलग-अलग तबकों की असली स्थिति का पता चलेगा और उनके हित में योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी।’ फारूकी ने जाति आधारित जनगणना पर क हा कि इस हकीकत को भुलाया नहीं जा सकता कि भारतीय समाज जाति आधारित है। जाति आधारित जनगणना से मिले महत्वपूर्ण आंकड़े अलग-अलग जातियों के विकास का नया खाका तैयार क रने का काम आसान कर देंगे।

जनगणना एक नजर मंे
> वर्ष 2011 की जनगणना देश में 1872 के बाद 15वीं और आजादी के बाद 7वीं होगी।
> जनगणना का काम दो चरणों में किया जाएगा। पहले चरण में घरों का चिह्न्ति और उनकी गणना की जाएगी। दूसरे चरण में आबादी की गणना का काम किया जाएगा।
> इस काम में देश के हर व्यक्ति और हर घर की गणना होगी। इसके लिए 21 लाख सरकारी कर्मचारी काम करेंगे।
> वर्ष 1931 के बाद की यह पहली जनगणना होगी जिसमें जाति संबंधी प्रo होगा। इससे पहले अनुसूचित जाति और जनजाति से संबंधित प्रश्न ही पूछे जाते रहे हैं।
> केंद्र सरकार के मुताबिक वर्ष 2001 की जनगणना के दौरान भी जाति संबंधी प्रoA को शामिल करने का सुझाव सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय ने दिया था। लेकिन उस समय सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया।
> जनगणना किसी भी रूप में नागरिकता का प्रमाण नहीं है। यह भारत के नागरिकों या विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिकों या फिर भारत के अधिकृत भू-भाग मंे रह रहे लोगों की पहचान का काम है।

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